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आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बेशर्म होना बुरी बात नहीं हैं

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ये 4 काम बिना शर्म किए करेंगे तो आप भी फायदें में रहेंगे

ऐसा माना जाता है कि बेशर्म होना बुरी बात है लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं जिनमें शर्म करने पर नुकसान होना निश्चित है। आचार्य चाणक्य ने 4 ऐसे काम बताए हैं जिन्हें करने में हमें कभी शर्म नहीं करना चाहिए। यहां दिए गए फोटो में जानिए ये चार काम कौन-कौन से हैं..

*आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
धनधान्यप्रयोगेषु विद्वासंग्रहणे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्।।
इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि जो भी व्यक्ति धन से संबंधित कार्यों में शर्म करता है उसे धन हानि का सामना करना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति हमें उधार दिया गया पैसा वापस लेना है और हम शर्म के कारण उससे पैसा मांग नहीं रहे हैं तो यह निश्चित है कि धन हानि होगी। अत: कभी भी धन से संबंधित कार्यों में शर्म नहीं करना चाहिए। धन के साथ अन्य किसी वस्तु के लेन-देन में भी शर्म नहीं करना चाहिए।
* इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति भोजन करने में शर्म करता है तो वह भूखा ही रह जाएगा। यदि कोई व्यक्ति किसी रिश्तेदार या मित्र के यहां भोजन करता है और वहां शर्म के कारण पेटभर खाना नहीं खाता है तो उसे भूखा रहना पड़ता है। हम जहां भी खाना खाए पेटभर खाएं, खाने में कभी भी शर्म नहीं करना चाहिए।
*आचार्य कहते हैं कि अच्छा विद्यार्थी वही है जो बिना शर्म किए अपने गुरु से सभी जिज्ञासाओं का उत्तर प्राप्त करता है। शिक्षा प्राप्त करने में जो व्यक्ति शर्म करता है वह अज्ञानी ही रह जाता है। विद्यार्थी को पढ़ाई करते समय शर्म न करते हुए सभी प्रश्नों के उत्तर गुरु से प्राप्त कर लेना चाहिए। जिससे भविष्य में किसी विषय में अज्ञानी होने की स्थिति से बचा जा सके।
*बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति के संबंध में एक अन्य नीति में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना उपयोगी। जिस प्रकार किसी अंधे व्यक्ति के आईना व्यर्थ है, उसका कोई उपयोग नहीं है। कोई भी अंधा व्यक्ति जब कुछ देख ही नहीं सकता तो उसके लिए आईना किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार किसी भी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें या ज्ञान की बात भी फिजूल ही है। क्योंकि मूर्ख व्यक्ति ज्ञान की बातों पर भी तर्क-वितर्क करते हैं और उन्हें समझ नहीं पाते।
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आचार्य चाणक्य के अनुसार मूर्ख व्यक्ति अक्सर कुतर्क में ही समय नष्ट करते रहते हैं जबकि बुद्धिमान व्यक्ति ज्ञान को ग्रहण कर उसे अपने जीवन में उतार लेते हैं। ऐसे में बुद्धिमान लोग तो जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य कर लेते हैं लेकिन मूर्ख व्यक्ति का जीवन कुतर्क करने में ही निकल जाता है। मूर्ख व्यक्ति को कोई भी समझा नहीं सकता है अत: बेहतर यही होता है कि उनसे बहस न की जाए, ना ही उन्हें समझाने का प्रयास किया जाए।
किसी भी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की किताबों का ढेर लगा देने से भी वह उनसे कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाएगा। उनके लिए किताबें मूल्यहीन ही है और किताबों में लिखी ज्ञान की बातें फिजूल है। अत: किसी भी मूर्ख व्यक्ति को समझाने में अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।


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