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नेपाल के गोरखनाथ में सतयुग से जल रहा है अखंड धूना

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नेपाल के गोरखनाथ में सतयुग से जल रहा है अखंड धूना

चम्पावत  नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश क्षेत्र के मंच में स्थापित गुरू गोरखनाथ मंदिर आध्यात्मिक पीठ के रूप में पूरे उत्तर भारत में प्रमुख स्थान रखता है। यहां आने वाले भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं। नि:संतानों को झोली भरने का वरदान मिलता है। मंदिर में सतयुग से जल रहे अखंड धूना की अलग ही पहचान है जो आज भी अनवरत प्रज्वलित है। गोरखपंथियों द्वारा स्थापित गुरु गोरखनाथ धाम का गो रक्षक के रूप में भी पूजन होता है।

चम्पावत-तामली मोटर मार्ग पर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर यह स्थान ऊंची पर्वत चोटी पर स्थापित है। यहां पहुंचने के लिए मंच तक वाहन से जाया जा सकता है। उसके बाद 2 किमी की पैदल यात्रा होती है। मंदिर से पहले मार्ग में अष्ट भैरवों की स्थापना है। जिन्हें क्षेत्रीय लोग रक्षक के रूप में वर्षो से पूजते आए हैं। कहा जाता है कि सतयुग में गोरख पंथियों ने नेपाल के रास्ते आकर इस स्थान पर धूनी रमाई थी। हालांकि धूनी का मूल स्थान पर्वत चोटी से नीचे था। लेकिन बाद में उसे वर्तमान स्थान पर लाया गया। जहां आज भी अनवरत धूनी प्रज्वलित है। इस धूनी में बांज की लकड़ियों को धोकर जलाया जाता है। मान्यता है कि इस धाम में आने वाले भक्त की हर मुराद पूरी होती है। वहीं, भक्तों को स्वप्न में गुरू गोरखनाथ मनवांछित वरदान देते हैं। तल्लादेश क्षेत्र की तीस से ज्यादा ग्राम पंचायतों के लोगों का यह प्रमुख धार्मिक केन्द्र है और इसकी व्यवस्थाओं के संचालन के लिए ग्रामीण एकजुट होकर हर वर्ष सहयोग देते हैं। क्षेत्र में होने वाली फसल हो या दुधारू जानवरों का दूध, जो सबसे पहले यहां चढ़ाया जाता है। इसलिए गौ रक्षक के रूप में भी इसकी पूजा-अर्चना होती है। कहते हैं कि जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में जंगली-जानवरों से पालतू जानवरों की रक्षा स्वयं गुरू गोरखनाथ करते हैं।

नैसर्गिक सौंदर्य का खजाना

यहां का नैसर्गिक सौंदर्य भी देखते ही बनता है। गोरखनाथ मंदिर से टनकपुर-बनबसा सहित नेपाल क्षेत्र के कई हिस्से और शारदा नदी का विहंगम दृश्य सबको आकर्षित करता है। प्रतिवर्ष धार्मिक पर्यटन में रूचि रखने वाले पर्यटक हजारों की तादात में यहां आते है।

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